सर्व मंगल मांगल्ये शिवे सर्वार्थ साधिके। शरण्येत्र्यंबके गौरी नारायणि नमोस्तुऽते॥~~~~~~~~~~~~~~~~~~ॐ जयंती मंगला काली भद्रकाली कपालिनी । दुर्गा क्षमा शिवा धात्री स्वाहा स्वधा नमोअ~स्तुते॥~~~~~~~~~~~~~~~~~~सर्वबाधा प्रशमनं त्रेलोक्यस्यखिलेशवरी। एवमेय त्वया कार्य मस्माद्वैरि विनाशनम्‌॥~~~~~~~~~~~~~~~~~~ॐ ह्रीं बगलामुखी सर्वदुष्‍टानां वाचं मुखं पदं स्तंभय जिह्वाम् कीलय बुद्धिम्विनाशाय ह्रीं ॐ स्वाहा।।

Wednesday 10 April 2013

मॉ शैलपुत्री (प्रथम दिवस)



देवी दुर्गा के नौ रूप होते हैं। दुर्गाजी पहले स्वरूप में 'शैलपुत्री' के नाम से जानी जाती हैं।[१] ये ही नवदुर्गाओं में प्रथम दुर्गा हैं। पर्वतराज हिमालय के घर पुत्री रूप में उत्पन्न होने के कारण इनका नाम 'शैलपुत्री' पड़ा। नवरात्र-पूजन में प्रथम दिवस इन्हीं की पूजा और उपासना की जाती है।

शैलपुत्री : मां दुर्गा का पहला रूप देवी शैलपुत्री का पूजन
नवरात्रि में दुर्गा पूजा के अवसर पर बहुत ही विधि-विधान से माता दुर्गा के नौ रूपों की पूजा-उपासना की जाती है। आइए जानते हैं प्रथम देवी शैलपुत्री के बारे में :-
मां दुर्गा को सर्वप्रथम शैलपुत्री के रूप में पूजा जाता है। हिमालय के वहां पुत्री के रूप में जन्म लेने के कारण उनका नामकरण हुआ शैलपुत्री। इनका वाहन वृषभ है, इसलिए यह देवी वृषारूढ़ा के नाम से भी जानी जाती हैं। इस देवी ने दाएं हाथ में त्रिशूल धारण कर रखा है और बाएं हाथ में कमल सुशोभित है। यही देवी प्रथम दुर्गा हैं। यही सती के नाम से भी जानी जाती हैं। उनकी एक मार्मिक कहानी है।
एक बार जब प्रजापति ने यज्ञ किया तो इसमें सारे देवताओं को निमंत्रित किया, भगवान शंकर को नहीं। सती यज्ञ में जाने के लिए विकल हो उठीं। शंकरजी ने कहा कि सारे देवताओं को निमंत्रित किया गया है, उन्हें नहीं। ऐसे में वहां जाना उचित नहीं है।
सती का प्रबल आग्रह देखकर शंकरजी ने उन्हें यज्ञ में जाने की अनुमति दे दी। सती जब घर पहुंचीं तो सिर्फ मां ने ही उन्हें स्नेह दिया। बहनों की बातों में व्यंग्य और उपहास के भाव थे। भगवान शंकर के प्रति भी तिरस्कार का भाव है। दक्ष ने भी उनके प्रति अपमानजनक वचन कहे। इससे सती को क्लेश पहुंचा। वे अपने पति का यह अपमान न सह सकीं और योगाग्नि द्वारा अपने को जलाकर भस्म कर लिया।
इस दारुण दुख से व्यथित होकर शंकर भगवान ने उस यज्ञ का विध्वंस करा दिया। यही सती अगले जन्म में शैलराज हिमालय की पुत्री के रूप में जन्मीं और शैलपुत्री कहलाईं। शैलपुत्री का विवाह भी भगवान शंकर से हुआ। शैलपुत्री शिवजी की अर्द्धांगिनी बनीं। इनका महत्व और शक्ति अनंत है। पार्वती और हेमवती भी इसी देवी के अन्य नाम हैं।
वन्दे वांच्छितलाभाय चंद्रार्धकृतशेखराम्‌ । वृषारूढ़ां शूलधरां शैलपुत्रीं यशस्विनीम्‌ ॥

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